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Wednesday, March 31, 2010

Argemone mexicana, Mexican Poppy, स्वर्णक्षीरी, सत्यानाशी,चोक


इसका वर्षायु क्षुप होता है जो कि कंटीले पत्रो युक्त एवं चमकीले हरे रंग का होता है , सर्दियों मे यह उत्पन्न होता है और बसंत मे इसके चमीकले फ़ूल आतेहैं । पत्तों को तोड़ने पर पीले रंग का दुध जैसा पदार्थ निकलता है , इसी कारण इसको स्वर्णक्षीरी भी कहते हैं ।
आयुर्वेदिक गुण--

गुण-- लघु , रुक्ष

रस-- तिक्त

विपाक-- कटु

वीर्य-- शीत

कफ़पित्तशामक, विरेचक, व्रणरोपण, शोधन, कृमिहर,

मै अपनी आयुर्वेदशाला मे इस द्रव्य को निम्नलिखित रोगों मे प्रयोग करता हूँ--
  1. व्रण( Skin Ulcer) शोधक कल्क को व्रण पर लगाने से दूषित व्रण भी ठीक हो जाता है
  2. विभिन्न त्वचा रोगों(Wet eczema) मे इसको अमलतास की लकड़ी, मैनशल, गंधक, बाकुची बीज, के साथ चुर्ण करके शतौध घृत मे मिलाकर लेप के रुप मे प्रयोग करने पर बहुत ही लाभजनक होता है ।
  3. मूल स्वरस ( ५-१० मिलि.) को हर प्रकार के चर्म रोगों मे प्रयोग किया जाता है ।

Tuesday, March 30, 2010

Blumea lacera ,ताम्रचूड़, कुकरौंधा


यह छोटा मुलायम रोमश एवं उग्र कर्पूरगंधि क्षुप होताहै जो कि उत्तर भारत मे सर्दियों के मोसम मे होताहै और बंसत के आखिर मे यह सूख जाता है , इस पौधे की सुंगंध चारो और फ़ैल जाती है ।

आयुर्वेदिक गुण-
गुण-- लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण

रस-- तिक्त कषाय

विपाक -- कटु

वीर्य-- ऊष्ण

कफ़पितशामक, रक्तरोधक, कृमिहर, शोथहर, व्रणरोपण,

मै अपनी आयुर्वेदशाला मे इस द्रव्य को निम्नलिखित रोगों मे उपयोग करता हूँ---
  1. रक्तज अर्श मे बहुत ही उपयोगी , एलुआ और इस द्रव्य को मिलाकर चने के आकार की गोलियाँ बना कर रक्तज अर्श मे प्रयोग
  2. जले हुए व्रणों मे कल्क का उपयोग बहुत ही अच्छा व्रणरोपण और एंटीसेप्टिक होता है
  3. बच्चॊ के कृमि ( उदर कृमियों मे ) एक चमच स्वरस को गर्म करके पिला दे
  4. नाक मे हुई फ़ुन्सियों मे इसकी जड़ को श्वेत कपड़े मे बांध कर गले मे डालने से तुरंत फ़ायदा होता है ।

Monday, March 29, 2010

Euphorbia thymifolia , नागार्जुनी, दुग्धिका, छोटी दुद्धी


आयुर्वेदिक गुण--
गुण- गुरु, रुक्ष,तीक्ष्ण,
रस- कटु, तिक्त , मधुर

विवरण-- यह छोटा प्रसरणशील, भूमि पर फ़ैलने वाला, रोमश,बिन्दी जैसे पत्ते वाला, रंग हरा व लाली लिये हुए हरा. होता है ।

मुख्य रूप से कफ़वात शामक होता है ।

मै अपनी आयुर्वेदशाला मे इसको निम्नलिखित व्याधियों मे प्रयोग करता हुँ---
  1. रक्तज अर्श( बवासीर ) की वर्धमान अवस्था मे बहुत ही उपयोगी , इसके कल्क को लेने से मांसाकुर सुख कर रक्तज अर्श को समाप्त कर देते हैं ।
  2. स्त्रियों के बन्ध्यत्व मे बहुत ही उपयोगी, इस पोधे मे यह विशेष गुण होता है की यह स्रोतोवरोध जन्य स्थिति मे बहुत ही अच्छा कार्य करती है , ट्युब ब्लोकेज मे यह उपयोगी द्रव्य है ।
  3. मधुमेह मे हल्दी और वासा स्वरस के साथ बहुत ही अच्छा प्रभाव दिखाती है ।

Sunday, March 28, 2010

Asteracantha longifolia , कोकिलाक्ष, तालमाखना


इसका वर्षायु क्षुप होता है , जो तालाबों और नहरो के किनारो पर मिलता है , तने की गाँठो पर काँटे होते है. पत्ते लम्बे होते है और गाँठो पर गुच्छे मे आते है ।

आयुर्वेद्कि गुण- गुरु, स्निग्ध, पिच्छिल, रस- मधुर, विपाक- मधुर, वीर्य- शीत, वातपित्त शामक

प्रयोज्यांग- मूल, पाँचांग, क्षार, बीज चुर्ण

दोषकर्म- शीतल, मूत्रजनन, शुक्रशोधन, स्तय्न्यजनन, संतर्पण, यकृतशोथ नाशक, बल्य, एवं वृष्य ।

धातुपौष्टिक चुर्ण मे यह एक घटक के रूप मे होता है ।

मै अपनी आयुर्वेदशाल मे इसको निम्नलिखत रोगों मे प्रयोग करता हुँ--

  1. पित्त की थैली की पथरी(Cholecystitis) मे यह बहुत ही उपयोगी है , क्वाथ का प्रयोग करें ।
  2. वातरक्त(Gout) और शोथ युक्त वातरक्त मे
  3. अश्मरी मे क्षार का प्रयोग
  4. वाजीकरण के लिये केंवाच बीज चुर्ण समान मात्रा मे कोकिलाक्ष बीज चुर्ण के साथ
  5. उत्तम गर्भाशय शामक (uterine sedative ) |

Saturday, March 27, 2010

Soleanum nigrum , मकोय, मको, काकमाची


काकमाची या मको उत्तर भारत मे लग्भग हर जगह पायाजाता है । यह पौधा खुब हरा भराहोताहै । दैनिक चिकित्सा मे मै इसको भरपुर उपयोग मे लाता हूँ । लिवर को रोगो मे इसका उपयोग बहुत ही उपयोगी है ! जहाँ एक से एक महंगी औषधियाँ काम नही करती यह काम कर जाती है । गुण तथा दोष कर्म--- तिक्त तथा कटुरस,स्निगध, उष्ण, रसायन, शुक्रजनन, तथा त्रिदोषशामक लिवर रोगो मे इसको देने का तरीका---शुद्ध भूमि से इसके पौधे को जड समेत उखाड कर अच्छी तरह से धो लें। इसके बाद इसको कुट कर इसका रस निकाल ले । एक मिट्टी कि हाण्डी लेकर इस रस को तब तक मन्द आँच पर तब तक गर्म करें जब तक की इसका रँग हल्का गुलाबी नही हो जाता । अब इसकॊ करीब ५० मि. लि. लेकर इसमे ३ काली मिर्चों का चुर्ण डालकर पी जाएं यदि आपकी जठराग्नि तीव्र है तो इसकॊ खाली पेट ले नही तो खाना खाने के १ घन्टे बाद ले । दिन केवल एक बार ले ध्यान देने योग्य बात यह है कि स्वरस हर रोज ताजा उपयोग करें। हर रोज बनाये और प्रयोग मे लाएं।

Friday, March 26, 2010

Alove vera, घृत कुमारी, कुमारी, घी कुँवार

घीकुवांर मुख्य रुप से कफ़ पित्त शामक होताहै । यह शीत, स्निग्ध, पिच्छिल, गुरु, रस मे कटु, विपाक मे मे भी कटु, और वीर्य शीत होता है , इसके रस के घन को एलुआ य मुस्स्ब्बर कहते है और यह ऊष्ण होता है ।

आधुनिक औषधि वर्गीकरण मे इसे पित्तविरेचन वर्ग मे रक्खा गया है । इसकी मुख्य क्रिया वृहदाआन्त्र पर होती है जिससे इसकी पेशीयों का प्रबल संकोच होकर इसकी पेरीस्टालिक मुमैंट बढ जाती है । इस तरह से यह कब्ज मे मुख्य रुप से काम करता है ।
कुल मिलाकर यह अपान वायु पर कार्य करता है
आचार्य भावमिश्र ने इसके ये गुण , दोषकर्म बताएं है ----भेदनी -- यानि रुके हुए मल का भेदन करने वाली
२ शीत
३. तिक्त
४ नेत्रॊं के लिये हितकर
५. रसायन ( बुढापे को रोकने वाली और व्याधिक्षम्त्व बढाने वाली)
६बृंहणीय ( शरीर को मोटा करने वाली)
वृष्य, बल्य, वातशामक, विषनाशक, गुल्म ( बाय का गोला), प्लीहारोग, यकृत विकार, कफ़रोग नाशक, ज्वरहर, ग्रन्थि नाशक( टुमर, सीस्ट,) नाशक, जले हुए मे लाभकारी, त्वचा के लिये हितकर,पैतिक और रक्त्ज रोगों का नाशक।

इसका घन यानि एलुआ मुख्य रुप से आर्तवजनन होता है ।

अब सवाल आता है कि इसका प्रयोग कैसे करे या किस रुप मे करे? आपके पास दो विक्ल्प है , एक एलोव वेरा जूस और अन्य आयुर्वेदिक शास्त्रिय योग जैसे कि कुमार्यासव । आईए इनका तुलनात्मक अध्ययन करके देखेते है ।
एलोव वेरा जूस मे सिर्फ़ एक घटक यानि ग्वारपाठा होता है , जिसमे कम्पनिया इसको सुरक्षित रखने के लिये विभिन्न प्रकार के प्रिजर्वेटिव केमिकल डालती है जैसे की - सिट्रीक एसिड , सोडियम बेन्जोएट, आदि आदि,।

अब ऋषिमुनियों द्वारा वर्णित योग यानि कुमार्यासव का अध्ययन करते है ---
मुख्य द्रव्य- ग्वारपाठे का रस
२ शहद, ३, लोह्भस्म,४,पुरानागुड,
मुख्य प्रेक्षप द्रव्य---
हल्दी, अकरकरा, त्रिफ़ला, त्रिकटु, नागकेशर, पिप्प्लीमूल, मुलेठी, पुष्करमूल, गोखरु,केवांच के बीज, उटंगन के बीज, पुनर्नवा, लोंग, इलायची, देवदारु आदि( शा० सं०)
कल्पना-- सन्धान कल्पना ( कुदरती एल्कोहाल )
जैसा कि पहले बताया है मुख्य रुप से ग्वारपाठा कफ़पित्त शामक होताहै यानि यदि लगातार इस को अकेले हि प्रयोग करते है तो यह शरीर मे दोषों को असाम्य कर सकता है । एलोव वेरा जुस मे केमिकल भी होते है यह भी सोचीये ..........?

लेकिन कुमार्यासव मे कोई केमिकल नही होता और न ही सिर्फ़ एक ही द्रव्य , ग्वार पाठे के विपरित प्रभाव को दुर करने के लिये इसमे अन्य द्रव्य बहुत है ।
अत: मेरे विचार मे एलोव वेरा जुस की आपेक्षा कुमार्यासव लेना हितकर है ।


Withinia sominifera अश्वगन्धा


अश्वगंधा एक बहुवर्षायु क्षुप होता है जो पश्चिमोत्तर भारत, महाराष्ट्र, मुजरात, मध्यपर्देश आदि मे मिलता है । देश भेद से यह पाँच प्रकार का होता है । मध्य प्रदेश के मन्दोसर जिले मे इसकी भरपुर खेती की जाती है ।

अश्वगन्धा के गुण और कर्म--

गुण- लघु स्निग्ध

रस- तिक्त, कटु, मधुर

विपाक- मधुर

वीर्य-- ऊष्ण

प्रयोज्य अंग-- मूल चुर्ण

मात्रा- ३-६ ग्रा.


मुख्य प्रयोग-





  1. सुजन मे इसके पत्तों को एरण्ड तैल मे गरम करके प्रभावित स्थान पर रख देते है , जिससे सुजन मे कमी आती है ।


  2. गिल्टी और स्थानिक सुजन मे इसकी मूल को पानी मे घीस कर लेप लगाने से वो ठीक हो जाती है


  3. चोपचीनी और अश्वगंधा के चुर्ण को समान भाग मिलाकर कोष्ण जल के साथ लेने से यह आमवात और पी आई डी मे बहुत ही चमत्कारी असर दिखाता है ।


  4. मानसिक शांति और अधिक रक्तचाप मे इसका प्रयोग किया जाता है इसके लिये अश्वगंधारिष्ट या अश्वगंधा लेह बहुत ही अच्छे योग है


  5. मुत्राघात ( पेशाब की रुकावट) मे यह बहुत ही उपयोगी है ।


  6. बालशोष मे यह विशेष उपयोगी है


  7. स्त्रियों की गर्भाशय संबंधि व्याधियों मे यह अतीव उपयोगी है ।