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Friday, April 30, 2010

Adhatoda vasica , Malabar Nut, अडुसा, वासा, वाजीदन्त,सिंहास्य


यह एक बहुवर्षायु क्षुप होता है और भारत वर्ष मे लगभग हर जगह मिल जाता है , इसके पुष्प सफ़ेद रंग के और मण्जरियों मे आते है , स्वाद मे ये मीठे होते है ।

गुणकर्म-- रुक्ष, लघु रस-- तिक्त, कषाय विपाक-- कटु वीर्य-- उष्ण

कफ़पित्त शामक, रक्तरोधक, रक्तशोधक, रक्तार्श नाशक, कासहर, श्वास हर, शोथहर, वेदना स्थापन,

  • रीढ की हड्डी की चोट मे इसके पत्तों को एरण्ड तैल से गरम करके बांधने से लाभ मिलता है ।
  • पीले पके हुए पत्तों का पूटपाक विधि से निकाले हुए रस का प्रयोग विभिन्न प्रकार कास मे किया जाता है
  • रक्तप्रदर और रक्तज अर्श मे इसके स्वरस और देसी खांड मिलाकर खानी पेट देने से लाभ मिलता है ।
  • वासामूल चुर्ण और निम्ब पत्र चुर्ण से रक्तभार मे फ़ायदा मिलता है ।
  • फ़ुलों के मुरब्बे का प्रयोग श्वास और कास मे कियाजाता है ।
  • विभिन्न चमडी के विकारो मे इससे सिद्ध पंचतिक्त घृत का प्रयोग किया जाता है
  • फ़ेफ़ड़ों और हृदय के लिये यह अतीव उपयोगी है।

चित्र प्रप्ति स्थान-- करनाल (हरियाणा)
प्रचलित योग- वासावलेह, वासारिष्ट, पंचतिक्त घृत आदि]


Tuesday, April 27, 2010

Alhagi camelorum , Camel thorn, यवासा


इसका कंटकयुक्त क्षुप वर्षायु होता है , जब ग्रीष्म ऋतु मे सभी क्षुप सुखने के कगार पर होते है तो यह हरा भरा होता है , वर्षा ऋतु मे यह सुख जाता है , मई मे इस पॊधे के गुलाबी रंग के छोटे छोटे पुष्प आते हैं, यह उत्तर भारत मे लगभग सभी जगह विशेष कर सुखी धरती पर होता है ।

इसके स्राव को तुरंजबीन कहते हैं ।

गुण- गुरु, स्निग्ध, रस-- मधुर, तिक्त , कषाय विपाक-- मधुर, वीर्य-- शीत


तृष्णानिग्रहण, वातपित्त शामक, रक्तरोधक, मुत्रजनन, रक्तार्बुद नाशक, रक्तज अर्श, रक्तभार शामक, विसर्प नाशक, रक्तशोधक, भ्रम नाशक, कासहर,

वातपैतिक विकारो जैसे की , तृष्णा, ज्वर, वमन, दाह आदि रोगो मे यह उपयोगी है
रक्तपित्त, रक्तज अर्श, वातरक्त मे इसके पांचाग का स्वरस या चूर्ण दिया जाता है ।
कुछ वैद्य इसके स्वरस को रक्तार्बुद मे प्रयोग करते हैं ।
मकोय और यवासा के स्वरस को कुछ गरम करके देने से मुत्र मार्ग की जलन , मुत्रकच्छ और मुत्राघात मे प्रयोग किया जाता है ।

Monday, April 19, 2010

Achyranthes aspera, अपामार्ग, लटजीरा,Prickly chaff flower


उत्तरभारत लगभग हर जगह मिल जाता है । बहुवर्षायु क्षुप, छोटे बीजों (कंटक युक्त) की मंजरी युक्त , इसके बीज यदि कपड़ों से स्पर्श हो जाते है तो चिपक जाते हैं ।


लघु, रुक्ष, तीक्ष्ण,

कटु, तिक्त

कटु विपाक एवं उष्ण वीर्य

उत्तम लीवर टोनिक, शोथहर, वेदना शामक, कृमिहर, शिरोविरेचन, हृदयरोग नाशक, रक्तज अर्श नाशक,

अपामार्ग के बीजो के नस्य लेने से छींके आती है और पुराना नजला और गर्दन के उपर के रोगों मे लाभ मिलता है

बीजों के कल्क को चावल के धावन से लेने पर रक्तज अर्श मे लाभ करता है
पांचांग का क्वाथ लिवर और उदर रोगों मे बहुत ही फ़ायदा करता है

इसका क्षार बेहतर कफ़ निस्सारक है , और विभिन्न कल्पनाओं मे प्रयोग किया जाता है , क्षारसुत्र मे भी इसका प्रयोग किया जाता है ।

कास श्वास मे इसका क्षार प्रयोग किया जाता है ।
धवल कुष्ठ निवारणार्थ इसके क्षार को मैनशिल और गोमुत्र मे पीसकर लेप कियाजाता है ।
इसकी मूल को गुलाब जल या शहद मे पीसकर आंखो मे लगाने से कृष्ण पटल के रोगों मे लाभ मिलता है


Sunday, April 18, 2010

Tinospora cordifolia, गिलोय बेल, अमृता, छिन्नरुहा


श्रीरामचन्द्र जी द्वारा रावण के संहार ऊपरांत जब सभी देवता अत्यंत प्रसन्न थे , तब इन्द्रदेव ने युद्ध मे मारे गये वानरो को पुनर्जीवत करने के लिये अमृत वर्षा की , जो बुन्दे वानरो पर पड़ी वो जीवीत हो गये , और जो बुन्दे धरती पर पड़ी उनसे ही इस पवित्र और अमृत रुपी बेल की उत्पति हुई । इसके गुण अमृत समान होने के कारण ही इसको अमृता भी कहा जाता है ।


त्रिदोषशामक , तिक्त, कटु, कषाय रस युक्त, मधुर विपाक वाली और उष्ण वीर्य वाली यह अमृता सारे उत्तर भारत मे लगभग सभी जगह मिल जाती है ।

यह रसायन, ओजोवर्धक, रक्तशोधक, शोधनाशक, ह्रुदयरोगनाशक, लीवर टोनिक, लगभग हर रोग मे काम आने वाली यह अमृता मेरी बहुत ही प्यारी है ।

प्रभाव से ही यह कमाला (पीलिया) का विनाश कर देती है , जीर्ण ज्वर को शीर्ण कर देती है । आमपाचन कर के यह अग्नि को तीव्र बना देती है, वातरक्त और आमवात के लिये तो यह महा काल है ।

वैद्य युक्ति पूर्वक इस अमृत कॊ लगभग सभी रोगों मे प्रयोग कर सकता है ।

प्रचलित योग-- अमृतारिष्ट, अमृतादि गुगुलु, कैशोरगुगुलु, गिलो सत्व, गिलो शरबत, गिलो चुर्ण, संमशनी वटी ,
अल्म्बुषादि चुर्ण ।

Sunday, April 11, 2010

Abutilon indicum , country mallow, अतिबला , कंघी


उत्तर भारत मे हर ऋतु मे मिल जाता है , पत्ते लट्वाकार दन्तुर छोटे व बडे़ हो सकते है , फ़ुल पीले रंग के होते है , बसंत मे फ़ूल आते है , फ़ल कंघी के आकार के गोल गोल होते है , बीज काले या कुछ भुरे रंग के होते हैं ।

गुण कर्म--

गुण- लघु, स्निग्ध, पिच्छिल,

रस-- मधुर

विपाक -- मधुर

वीर्य -- शीत

ओजोवर्धक, त्रिदोषशामक, रक्तज अर्श, शुक्रवर्धक, शुक्रशोधन, Rasayana, बाँझपन,
इसके सभी गुण लगभग बला के समान होते है ।

  • इसके पत्तों को गुड़ मे रख कर खाली पेट देने पर रक्तार्श मे लाभ होता है ।

Wednesday, April 7, 2010

Lochnera rosea, Madagascar periwinkle संदपु्ष्पा, सदाबहार


आधुनिक द्रव्य औषधि विग्यान मे इस को रक्तार्बुद नाशक गण मे रखा गया है । इसका छोटा क्षुप होता है जो कि लगभग हर घर मे मिलजाता है , इसकी दो तरह की प्रजाति होती है एक गुलाबी रंग के फ़ुलों की और दुसरी सफ़ेद रंग के फ़ुलो की । भारत मे लगभग हर जगह यह बागों मे गमलो मे घरॊ मे लगाया हुआ मिल जाता है ।


आयुर्वेदिक गुण----


गुण---लघु रुक्ष, तीक्ष्ण


रस-- कषाय, कटु


विपाक-- कटु


वीर्य-- उष्ण


रक्तार्बुदनाशक, प्रमेहनाशक, कफ़वात शामक,


चित्र प्राप्ति स्थान-- करनाल (हरियाणा)


मै अपनी आयुर्वेदशाला मे इसको निम्नलिखित रोगों मे प्रयोग करता हूँ--



  • सफ़ेद फ़ुलों वाली प्रजाति के पत्रो के कल्क का का प्रयोग मधुमेह मे किया जाता है ।

  • रक्तार्बुद मे इसके मूल चुर्ण का प्रयोग किया जाता है

  • रक्तभाराधिकय मे इसके पांचांग के चुर्ण लाभदायक होता है ।

प्रयोज्यांग-- पत्र, मूल, पांचांग


Tuesday, April 6, 2010

Sida cordifolia,Country Mallow, बला, खिरैंटी


इसका बहुवर्षायु क्षु्प हो्ता है , इसकी कई प्रजातियाँ होती है । पत्ते लट्वाकार और दन्तुर होते है , पु्ष्प--पत्रकोणो से उत्त्पन पीले रंग के होते है ।बीज छोटे भूरे या काले रंग के होते है । इसके बीजों को बीजबन्द के नाम से जाना जाता है।


चित्र प्राप्ति स्थान -- करनाल (हरियाणा)


आयुर्वेदिक गुण---


गुण-- लघु,स्निग्ध,पिच्छिल


रस-- मधुर


विपाक-- मधुर


वीर्य-- शीत


बल्य, गर्भप्रद, वातशामक, शो्थनाशक, हृदयरोगनाशक, शुक्रवर्धक,ओजोवर्धक ।


मै अपनी आयुर्वेदशाला मे इसको निम्नलिखित रोगों मे प्रयोग करता हूँ-


  • क्षयरोग व आजो वर्धन के लिये

  • स्त्रियों के बाँझपन के लिये

  • पुरुषों मे शुक्रहीनता के लिये

प्रयोज्यांग-- स्वरस व मूल चुर्ण

बलारिष्ट मे यह मुख्य घटक के रुप मे होती है ।




Saturday, April 3, 2010

Solanum surratence,Yellow Berried Night shade ,कंटकारी,छोटी कटेरी


इसका फ़ैलने वाला , बहुवर्षायु क्षुप होता है ,पत्ते लम्बे काँटो से युक्त हरे होते है , पुष्प नीले रंग के होते है , फ़ल क्च्चे हरित वर्ण के और पकने पर पीले रंग के हो जाते है , बीज छोटे और चिकने होते है ।

यह पश्चिमोत्तर भारत मे शुष्कप्राय स्थानों पर होती है ।

आयुर्वेदिक गुण कर्म--
गुण-- लघु, रुक्ष, तीक्ष्ण

रस-- तिक्त, कटु

विपाक-- कटु

वीर्य-- ऊष्ण

कफ़वात शामक, कासहर, शोथहर, रक्तशोधक, बीज शुक्रशोधन, हृदयरोगनाशक, वातशामक,रक्तभारशामक( Lowers the Blood pressure) ।

मै अपनी आयुर्वेदशाल मे इसको निम्नलिखित रोगों मे प्रयोग करता हूँ --
  • विभिन्न त्वचा रोगों मे पंचतिक्त घृत के रूप मे
  • विस्फ़ोट(Boils) पर इसके बीजों का लेप किया जाता है
  • श्वास व कास रोगों मे , जहाँ कफ़ गाड़ा और पीलापन लिये हुए होता है
कंटकारी के प्रचलित योग -- व्याघ्रीहरितकी, कण्टकारी घृत, व्याघ्री तैल, पंचतिक्तघृत, निदिग्धिकादि क्वाथ ।

Friday, April 2, 2010

Boerhavia diffusa,Spreading hogweed पुनर्नवा, गदहपुरना


यह एक फ़ैलने वाला क्षुप होता है जो कि स्मस्त भारत मे प्राय: शुष्क स्थानो मे होता है , गर्मियों मे यह सूख जाता है , इसके पत्ते लालिमा लिये हुए हरे रंग के मांसल, लटवाकार, होते है , काण्ड लालिमा लिये हुए हरे रंग का होता है । पुष्प बहुत छोटे और गुलाबी रंग के होते है और एक लम्बी टहनी (वृन्त) पर गुच्छों मे आते है , इसकी मूल का ज्यादा प्रयोग होता है ।

आयुर्वेदिक गुण कर्म--
गुण-- लघु, रुक्ष

रस-- मधुर, तिक्त, कषाय
विपाक-- मधुर

वीर्य-- ऊष्ण


त्रिदोषशामक,शोथघ्नी,विरेचक,नेत्रविकार नाशक, कब्ज नाशक, विषहर, पाण्डु रोग नाशक, उदर रोग नाशक, सर्वांगशोथ नाशक, मुत्रविरेचक,ह्रुदय रोग नाशक,

मै अपनी आयुर्वेदशाला मे इसको निम्नलिखित रोगों मे प्रयोग करता हूँ ---

१. सभी प्रकार की स्थानिक सुजन और सर्वांग सुजन मे इसकी मूल के कल्क को थोड़ा गरम करके शोथ युक्त स्थान पर लेप लगाने पर वह सुजन कम हो जाती है ।

२. सर्वांगशोथ विशेष कर हृदय जन्य शोथ मे यह बहुत ही लाभ करती है ।

३. अक्षि अभिष्यंद(eye flue) और अक्षि शूल मे इसकी मुल के स्वरस को डालने से चम्तकारी लाभ मिलता है ।

४. शोथ युक्त हृदय रोगों मे और यृकत(liver) जन्य शोथ मे इसकी मूल का क्वाथ या इसके शास्त्रीय योगों को देने से फ़ायदा मिलता है ।

५. इसके शाक का प्रयोग उदररोग, पाण्डु रोग(anemia),हृदय रोग , शोथ(edema), आमवात. आदि मे बेहिचक कर सकते हैं ।

Thursday, April 1, 2010

Calotropis procera , Madar, आक, अर्क, आखा


यह बहुवर्षायु गुल्म या क्षुप होता है जो कि शुष्क और सुखी जमीन पर अधिक पाया जाता है , पश्चिमोत्तर भारत मे यह बहुत मिलता है , इसकी मुख्यतया दो प्रजाति होती है , एक लाल फ़ुलो वाला और एक सफ़ेद फ़ुलो वाला , यहाँ पर लाल फ़ूल वाले अर्क का वर्णन किया गया है । बसंत मे गुच्छो मे फ़ूल लगते है जो कि सफ़े या कुछ लाल रंग के होते है और गर्मियों मे फ़ल आने पर रुई के समान इस मे से रेशे निकलते है ।

आयुर्वेदिक गुण--
गुण-- लघु , रुक्ष , तीक्ष्ण
रस-- कटु, तिक्त
विपाक-- कटु
वीर्य-- उष्ण

कफ़वातशामक, शोधनीय, वमनोपग,विरेचन,

मै अपनी आयुर्वेदशाला मे इस का निम्नलिखित रोगोंमे व्यवाहर करता हुँ==

  1. विभिन्न उदररोगों मे अर्क लवण का प्रयोग
  2. कर्ण पीड़ा मे ताजे पीले पतों के स्वरस को कुछ गरम करके , कान मे डालने से तुरंत लाभ होता है
  3. कठिन , रुक्ष , मोटे, पाकरहित , दद्रु रोग, आदि त्वचा रोगों मे जिसमे पाक न होता है , इसके मूल की त्वचा का लेप या इसका दुध लाभदायक होता है
  4. माईग्रेन (Migraine ) की यह विशेष औषधि है
  5. भगन्दर कि चिकित्सा मे प्रयुक्त क्षारसूत्र को इसके दुध से भावित करके बनाया जाता है ।
  6. विष दुर करने के लिये इसकी मूल के चुर्ण का प्रयोग किया जाता है , इससे वमन और विरेचन दोनो एकदम हो जाते है और काया विष रहित हो जाती है
  7. शोशयुक्त जोडो़ के दर्द मे और आमवात इसके पत्तो को गरम करके बांधने से लाभ मिलता है
  8. श्वास रोग मे इसको फ़ुलो को शुण्ठि और वासा मुलचुर्ण के साथ कोष्ण जल से लेने से फ़ायादा होता है ।