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Saturday, June 26, 2010

Ricinus communis, एरण्ड, पंचाँगुल,


एरण्ड लगभग सारे भारतवर्ष मे हर जगह मिल जाता है , जैसा की नाम से विदित होताहै इसके पते एक फ़ैले हुए हाथ की तरह होते है , इसलिये इसको पंचाँगुल कहते है । वातहर एवं वृष्य द्रव्यों मे यह सर्वश्रेष्ठ है ऎसा चरक ने बताया है , आजकल वैद्यवर्ग इसका चिकित्सा मे भरपूर उपयोग करते है । वात रोगों मे यह मेरी प्रिय औषधि है , इसका विभिन्न रुपॊं मे प्रयोग किया जा सकता है , जैसे कि , एरण्ड मूल का क्वाथ या चुर्ण, इसके बीजों का तैल , इसके बीजों द्वारा बनाया गया एरण्ड पाक जो की मुख्य रुप से बड़ती हुई उम्र मे शरीर मे हो रही वात वृद्दि का शमन करता है और बड़ती हुई उम्र मे होने वाले रोग जैसे की , अनिद्रा, शरीर मे बाय - बादी, चिन्तन करना, चलने फ़िरने मे परेशानी आदि आदि ।
हमारे ग्रन्थ एरण्ड के बारे मे क्या कहते हैं--

गुण कर्म-- स्निग्ध, तीक्ष्ण, सूक्ष्म .
रस-- मधुर,
विपाक- मधुर
वीर्य-- उष्ण
कफ़वातशामक, वातहर, वाजीकरण, हृदयरोगनाशक, आमवातशामक, वेदनास्थापन, उदररोग नाशक, बस्तिशूल नाशक, योनिरोगनाशक, शुक्ररोगनाशक, वृदिरोग नाशक, स्त्नयरोगनाशक, स्रोतोशोधन, वय:स्थापन, शोथनाशक, कटिशूल नाशक ।
मै अपनी आयुर्वेदशाला मे इसकॊ निम्नलिखित रोगों मे प्रयोग करता हूँ --
  • कमरदर्द मे दशमूल क्वाथ और एरण्ड तैल के साथ , साथ मे शिलजीत मिलाकर बहुत ही लाभदायक
  • विभिन्न योनिरोगों मे , विशेषकर कृच्छार्तव, मासिक अनियमितता, ओवेरियन पोलिसिस्टिक रोग, आदि रोगों मे
  • शुक्र रोगों मे खासकर शुक्राणुओं की कमी , लो मोटिलीटि, आदि मे मुलेठी चुर्ण के साथ लगातार प्रयोग करने से लाभ मिलता है ।
  • सन्धि शूल और आमवात मे एरण्ड तैल और एरण्ड्मूल + रास्ना क्वाथ ।
  • वृद्धावस्थाजन्य रोग मे एरण्ड पाक बलारिष्ट के साथ बहुत ही उपयोगी ।
  • गृध्रसि रोग मे सुरांजन , विषतिन्दुक, रससिन्दुर और एरण्ड तैल का अभ्यान्तर प्रयोग और साथ मे एरण्ड तैल मे गर्म किये हुए एरण्ड के पत्तों से सेक लाभदायक ।
  • आमवात रोग मे बहुत ही उपयोगी , इसके तैल मे भ्रष्ट हरितकी और सिंहनाद गुगलु बहुत ही उपयोगी ।
स्तनोंमे उत्पन्न गांठों मे एरण्डतैल लगाकर एरण्ड पत्र बांधने से लाभ मिलता है ।

मार्किट मे इसके निम्नलिखित योग आसनी से मिल सकते हैं---

एरण्ड पाक, एरण्डमूलादि क्वाथ, रास्नासप्तक क्वाथ, एरण्ड तैल, सिंहनाद गुग्गुलु आदि ।

Monday, June 7, 2010

Cichorium intybus,कासनी Endive


उत्तर भारत मे शीतकाल मे यह पौधा पैदा होता है । इसके पुष्प नीले रंग के आते है गर्मियो पुष्प और बीज आने के बाद यह सूख जाती है ।
प्रयोज्य अंग-- बीज, पत्र, मूल

मात्रा- पत्रस्वरस- १० से २० मि. लि. , बीज चुर्ण- ३- ५ ग्रा. मूल चुर्ण- ३-५ ग्रा.

उत्तम लिवर टोनिक, हृदय को बल देने वाली, कफ़पित्त शामक, मूत्रजनन, रक्तशोधक, आमाशय को बल देने वाली

युनानी चिकित्सा मे यह मह्त्वपूर्ण औषधि है ।
गुण- लघु, रुक्ष. रस-- तिक्त. विपाक- कटु, वीर्य- उष्ण

मुख्य प्रयोग--
नेत्रज्योति प्रकाशनि, शीतल, दाह, पित्त, ज्वर, कामला( पीलिया) , रक्तविकार , कृशता (शरीर का पतलापन) इन रोगो मे यह बहुत ही उपयोगी है ।
दिल की धड़कन के बड़ने पर इसके बीजो का शीत कषाय पीने से तुरंत लाभ मिलता है ]

मुख्य योग-- अर्क कासनी( हमदर्द)