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Tuesday, December 28, 2010

Cannabis sativa, indian mariijuna, भंगा, भांग

भारत मे लगभग हर जगह पाया जाने वाला यह पौधा  ग्रीष्म ऋतु मे हर भरा रहने वाल और शीत ऋतु मे सुखने वाला होता है । इसके पौधे मे कुछ अजीब सी गंध आती है ,पत्ते तीन या चार पतिया युक्त और दंतुर होते है । 
इसके पुष्प मंजरियों मे आते है और हरिताभ श्वेत रंग के होते हैं ।
स्त्री जाति की राल युक्त मजरी को गांजा के नाम से जाना जाता है । पत्र एंव शाखाओं पर जमे हुए रालीय पदार्थ को चरस के नाम से जाना जाता है । ये सभी मादक पदार्थ होते है ।
आयुर्वेदिक गुण कर्म ----
यह लघु तीक्ष्ण, तिक्त विपाक मे कटु, वीर्य मे उष्ण, और प्रभाव मे मादक होती है । 

यह अग्नि का दीपन करने वाली , कफ़ को दूर करने वाली , ग्राही , पाचक, पित्तकारक,  मोह, मद, वाणी और जठराग्नि को बड़ाने वाली होती है ।
मुख्य रुप से इसका प्रयोग वाजीकरण औषधियों मे किया जाता है । स्थानिक लेप मे यह वेदना हर होती है । 
प्रधान क्रिया मन और बुद्धि पर होती है ,निद्राजनक औषधियों मे इसका प्रयोग किया जाता है ।
भांग हास-विलास  के रंग को जमानेवाली, मद तथा मोह मे अतिवृद्धि करने वाली ,कब्ज को दूर करने वाली, अनंग रंग तथा क्षुढा की तरंग को  बड़ानेवाली हरित- रंग के अंगवाली भांग स्पृहणीय है। ( सि. भै. म.मा )

Saturday, December 18, 2010

Centella asiatica,ब्राह्मी, मण्डूकपर्णी

इसका फ़ैलने वाला छोटा क्षुप होता है जो कि नमी वाली जगह पर होता है । पत्ते कुछ मांसल और छ्त्राकार होते है तथा किनारों पर दंतुर होते है । इसके पत्तों का व्यास लगभग आधा ईंच से लेकर एक ईंच तक होता है।
उत्तर भारत मे यह लगभग हर जगह पर नमी वाली जगह पर छाया वाली जगह पर मिल जाता है ।

आयुर्वेद मे यह द्रव्य मेध्य द्र्व्य के रुप मे गिना जाता है । पागलपन और मृगी की प्रसिद्ध औषधी सारस्वत चुर्ण मे इसके स्वरस की भावना दी जाती है ।
आधुनिक खोजों से भी इस द्र्व्य के मेध्य गुण होने का प्रमाण मिलता है ।
विद्वानो मे एक अन्य द्र्व्य ऐन्द्री (Bacopa monnieri) को भी ब्राह्मी के रुप मे लिया गया है । अधिकतर वैद्य इसी को असली ब्राह्मी मानते हैं ।

यह शीत वीर्य, तिक्त रस प्रधान, कषाय, लघु, मेधा के हितकर, विपाक मे मधुर, आयु को बड़ाने वाली , रसायन, स्वर को उत्तम करने वाली स्मरण शक्ति को बड़ाने वाली, होती है । ( भाव. प्रकाश )

मै अपनी आयुर्वेदशाला मे इसको निम्नलिखित रोगों मे प्रयोग करता हूँ --

  • विभिन्न प्रकार के त्वचा विकारो और बालो के विकारो मे इसका स्थानिक प्रयोग
  • बच्चो के शब्द उच्चारण के ठीक से ना करने पर इसके पत्तों के चबाने के लिये दिया जाता है ।
  • स्मरण शक्ति को बड़ाने के लिये इसके स्वरस या चुर्ण का प्रयोग ।
  • हृदय की दुर्बलता मे शंखपुष्पी के साथ इसका प्रयोग लाभदायक है ।
  • शोथ मे इसका प्रयोग मकोय के स्वरस के साथ लाभदायक पाया गया है ।

मात्रा-- स्वरस -- १० से २० मि. लि.
प्रसिद्ध योग-- सारस्वत चुर्ण, ब्राह्मी तैल

Monday, December 6, 2010

Vernonia cineria , Purple fleabane,सहदेवी

इसका कोमल क्षूप तुलसी के पौधे की तरह का होता पत्ते भी लगभग तुलसी के तरह के होते हैं ।उत्तर भारत मे लगभग हर जगह यह सितम्बर के बाद हर जगह दिखाई देता है। इसके कुछ गुलाबी या बैगंनी रंग के फ़ुल आते हैं ।

आयुर्वेदिक गुण--
यह लघु, रुक्ष, रस मे तिक्त विपाक मे कटु और वीर्य मे उष्ण होता है।

प्रभाव से यह स्मोहित करने वाला और ज्वर नाशक होता है।

ज्वरं हन्ति शिरोबद्धा सहदेवी जटा यथा ॥

कफ़वातशामक, ज्वरहर, शोथहर, वेदनास्थापन कृमिघ्न आदि वर्गों मे इसको रखा गया है ।
मुख्य रुप से इसका प्रयोग विषम ज्वर मे होता है , इसमे इसका स्वरस १० से २० मि. लि. थोड़ा गरम करके देते हैं ।
तिक्त और लघु होने से यह चर्म विकारो और प्रमेह मे भी उपयोगी है ।
चित्र प्राप्ति स्थान -- राणा एग्री. फ़ार्म जिला करनाल