यह एक बहुवर्षायु क्षुप होता है और भारत वर्ष मे लगभग हर जगह मिल जाता है , इसके पुष्प सफ़ेद रंग के और मण्जरियों मे आते है , स्वाद मे ये मीठे होते है ।
गुणकर्म-- रुक्ष, लघु रस-- तिक्त, कषाय विपाक-- कटु वीर्य-- उष्ण
कफ़पित्त शामक, रक्तरोधक, रक्तशोधक, रक्तार्श नाशक, कासहर, श्वास हर, शोथहर, वेदना स्थापन,
- रीढ की हड्डी की चोट मे इसके पत्तों को एरण्ड तैल से गरम करके बांधने से लाभ मिलता है ।
- पीले पके हुए पत्तों का पूटपाक विधि से निकाले हुए रस का प्रयोग विभिन्न प्रकार कास मे किया जाता है
- रक्तप्रदर और रक्तज अर्श मे इसके स्वरस और देसी खांड मिलाकर खानी पेट देने से लाभ मिलता है ।
- वासामूल चुर्ण और निम्ब पत्र चुर्ण से रक्तभार मे फ़ायदा मिलता है ।
- फ़ुलों के मुरब्बे का प्रयोग श्वास और कास मे कियाजाता है ।
- विभिन्न चमडी के विकारो मे इससे सिद्ध पंचतिक्त घृत का प्रयोग किया जाता है
- फ़ेफ़ड़ों और हृदय के लिये यह अतीव उपयोगी है।
चित्र प्रप्ति स्थान-- करनाल (हरियाणा)
प्रचलित योग- वासावलेह, वासारिष्ट, पंचतिक्त घृत आदि]