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Sunday, April 18, 2010

Tinospora cordifolia, गिलोय बेल, अमृता, छिन्नरुहा


श्रीरामचन्द्र जी द्वारा रावण के संहार ऊपरांत जब सभी देवता अत्यंत प्रसन्न थे , तब इन्द्रदेव ने युद्ध मे मारे गये वानरो को पुनर्जीवत करने के लिये अमृत वर्षा की , जो बुन्दे वानरो पर पड़ी वो जीवीत हो गये , और जो बुन्दे धरती पर पड़ी उनसे ही इस पवित्र और अमृत रुपी बेल की उत्पति हुई । इसके गुण अमृत समान होने के कारण ही इसको अमृता भी कहा जाता है ।


त्रिदोषशामक , तिक्त, कटु, कषाय रस युक्त, मधुर विपाक वाली और उष्ण वीर्य वाली यह अमृता सारे उत्तर भारत मे लगभग सभी जगह मिल जाती है ।

यह रसायन, ओजोवर्धक, रक्तशोधक, शोधनाशक, ह्रुदयरोगनाशक, लीवर टोनिक, लगभग हर रोग मे काम आने वाली यह अमृता मेरी बहुत ही प्यारी है ।

प्रभाव से ही यह कमाला (पीलिया) का विनाश कर देती है , जीर्ण ज्वर को शीर्ण कर देती है । आमपाचन कर के यह अग्नि को तीव्र बना देती है, वातरक्त और आमवात के लिये तो यह महा काल है ।

वैद्य युक्ति पूर्वक इस अमृत कॊ लगभग सभी रोगों मे प्रयोग कर सकता है ।

प्रचलित योग-- अमृतारिष्ट, अमृतादि गुगुलु, कैशोरगुगुलु, गिलो सत्व, गिलो शरबत, गिलो चुर्ण, संमशनी वटी ,
अल्म्बुषादि चुर्ण ।

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