यह भूमि पर फ़ैलने वाला छोटा प्रसरणशील क्षुप होता है जो कि आषाड और श्रावण मास मे प्राय हर प्रकार की जमीन या खाली जमीन पर उग जाता है । पत्र खंडित और फ़ुल पीले रंग के आते हैं , फ़ल कंटक युक्त होते हैं , बाजार मे गोखरु के नाम से इसके बीज मिलते हैं ।
उत्तर भारत मे ,हरियाणा, राजस्थान , मे यह बहुत मिलता है।
यह शीतवीर्य, मुत्रविरेचक, बस्तिशोधक, अग्निदीपक, वृष्य, तथा पुष्टिकारक होता है ।
विभिन्न विकारो मे वैद्यवर्ग द्वारा इसको प्रयोग किया जाता है ,
मुत्रकृच्छ, सोजाक, अश्मरी, बस्तिशोथ, वृक्कविकार, प्रमेह, नपुंसकता, ओवेरियन रोग, वीर्य क्षीणता मे इसका प्रयोग किया जाता है ।
मै अपनी आयुर्वेदशाला मे इसको निम्नलिखित रोग मे प्रयोग करता हुँ --
- वृक्क अश्मरी मे गोक्षुर+ यवक्षार+ गिलो्सत्व+ कलमी शोरा का प्रयोग बहुत ही कारगर होता है ।
- क्रोंचबीचचुर्ण+ गोक्षुर+ तालमाखाना , वीर्य वर्धक और वीर्य शोधक ,
चित्रप्राप्ति स्थान-- राणा एग्रिक्ल्चर फ़ार्म जिला करनाल हरियाणा