Saturday, July 31, 2010

Tribulus terrestris , Land caltrops, Puncture vine, गोक्षुर, गोखरु


यह भूमि पर फ़ैलने वाला छोटा प्रसरणशील क्षुप होता है जो कि आषाड और श्रावण मास मे प्राय हर प्रकार की जमीन या खाली जमीन पर उग जाता है । पत्र खंडित और फ़ुल पीले रंग के आते हैं , फ़ल कंटक युक्त होते हैं , बाजार मे गोखरु के नाम से इसके बीज मिलते हैं ।
उत्तर भारत मे ,हरियाणा, राजस्थान , मे यह बहुत मिलता है।
यह शीतवीर्य, मुत्रविरेचक, बस्तिशोधक, अग्निदीपक, वृष्य, तथा पुष्टिकारक होता है ।
विभिन्न विकारो मे वैद्यवर्ग द्वारा इसको प्रयोग किया जाता है ,
मुत्रकृच्छ, सोजाक, अश्मरी, बस्तिशोथ, वृक्कविकार, प्रमेह, नपुंसकता, ओवेरियन रोग, वीर्य क्षीणता मे इसका प्रयोग किया जाता है ।
मै अपनी आयुर्वेदशाला मे इसको निम्नलिखित रोग मे प्रयोग करता हुँ --
  • वृक्क अश्मरी मे गोक्षुर+ यवक्षार+ गिलो्सत्व+ कलमी शोरा का प्रयोग बहुत ही कारगर होता है ।
  • क्रोंचबीचचुर्ण+ गोक्षुर+ तालमाखाना , वीर्य वर्धक और वीर्य शोधक ,
गर्भिणी परिचर्या मे , गोक्षुर+ कमल् के फ़ूल+ मुलेठी + देवदारू और शतावरी का प्रयोग करता हूँ ।

चित्रप्राप्ति स्थान-- राणा एग्रिक्ल्चर फ़ार्म जिला करनाल हरियाणा

2 comments:

Dr. D. P Rana said...

इस महत्वपूर्ण औषधि के बारे मे कृपया अपने भी विचार प्रकट करें । अगर आप कुछ बातें शेयर करोगे तो मुझे बहुत ही खुशी मिलेगी ।
धन्यवाद

sukha ram inaniyan said...

Dr.Rana सादर नमस्कारः मेँ नागौर राजस्थान से हूँ.मुझे गोखरु केmarket के बारे मेँ जानकारी चाहिए:-[बेचने हेतू;) यदि कोई link हो तो pls.मेरेemail add. ...srinaniyan@gmail.com पर post करेँ आपकी बङी मेहरबानी होगी THANKS SIR .......SUKHA RAM INANIYAN

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