आस्था आयुर्वेद , असंध (हरियाणा)| पुराने रोग एवं बन्ध्यत्व निवारण केन्द्र |
Wednesday, July 21, 2010
,Clerodendrum phlomidis अग्निमंथ, अरणी
इसका बहुवर्षायु क्षुप होता है जो कि झुण्ड बनाकर बड़ता है , पत्र लट्वाकार और अभिमुख होते है पुष्प सफ़ेद होते है ।
इसको वृहद अग्निमंथ के आभाव मे प्रयोग किया जाता है ।
यह लगभग सारे उत्तर भारत मे पाया जाता है ।
इसके गुण और प्रयोग-
उष्ण, दीपन, सारक, बल्य, रसायन, शोथहर होता है ।
कफ़ वात शामक , बल्य, रसायन, शोथहर
मै इसकॊ निम्नलिखित रोगों मे प्रयोग करता हुँ--
आगन्तुज शोथ मे इसके क्वाथ से अवगाहन स्वेद करने से तुरंत लाभ मिलता है ।
हृदय रोग (कफ़ज) मे इसके क्वाथ और शिलाजीत का सेवन बहुत ही उपयोगी है ।
आमवात और आंत्रिक ज्वर मे इसका प्रयोग विषतिन्दुक वटी के साथ करने से फ़ायदा मिलता है ।
मधुमेह मे इसके पत्रस्वरस का प्रयोग किया जाता है।
विभिन्न विस्फ़ोट युक्त ज्वरों की अवस्था मे इसके क्वाथ या स्वरस का प्रयोग किया जाता है।
चित्र प्राप्ति स्थान-- राणा एग्रीक्ल्चर फ़ार्म , जिला करनाल हरियाणा ।
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