आयुर्वेद की यह अनोखी औषधी लगभग सारे उत्तर भारत मे हर जगह और् हर मोसम मे मिल जाती है । लगभग सभी निघुंटुओं मे इसका वर्णन मिलता है । आधुनिक द्र्व्य गुण मे इसको कासघ्न वर्ग मे रखा गया है ।
भावप्रकाश मे इसका वर्णन इस प्रकार से आया है ---
कंटकारीसरातिक्ताकटुका दीपनी लघु: ।
रुक्षोष्णापाचनीकासश्वासज्वरकफ़ानिलान् ॥
निहन्तिपीनसंपार्शवपीडाकृमिह्रुदमयान् ।
तस्या: फ़लंकटुरसेपाके च कटुकंभवेत् ॥
शुक्रस्यरेचनंभेदितिक्तंपित्ताग्निकृल्लघु ।
हन्यात् कफ़मरुककंडुकासमेद:कृमिज्वारन् ॥
तद्व्त्प्रोक्ता सिता क्षुद्रा विशेषाद् गर्भकारिणी ।
कंटकारी तिक्त और् कटु रस युक्त दीपन कर्म करने वाली रुक्ष, पाचन करने वाली श्वास, ज्वर, कफ़ वात का हरण करने वाली होती है ।
पूराना नजला, पार्श्वपीड़ा ( निमोनिया) , कृमि, हृदयरोगेहितकर होती है ।
इसके फ़ल कटुरसयुक्त और् शुक्र रेचन होते है यानि की वाजीकरण होते है । विशेषकर सफ़ेद फ़ुलो वाली कंटकारी गर्भप्रद होतीहै ।
मै अपनी आयुर्वेदशाला मे इसको निम्नलिखित रोगों मे उपयोग करता हू -
- बच्चों के गुदाकृमि मे इसके सूखे फ़लो मे सरसो का तैल मिलाकर अग्निपर रखकर धुआं करने से गुदा गत कृमि मर कर बाहर निकल आते है ं ।
- मैच्युरेशन अरेस्ट के कारण हुई शुक्रणता मे प्रयोग किया जाता है
- विभिन्न त्वचारोगों मे अन्य द्र्व्यों के साथ इससे सिद्ध् घृत का प्रयोग किया जाता है ।
- कैंसररोग खासकर उर्ध्वजत्रुगत कैंसर यानि की गले का कैंसर मे इसका प्रयोग अन्य द्र्व्यों जैसे कि पर्पटक, गोमुत्र, गिलोय, चिरयता आदि से बनाया गया अर्क बहुत ही चम्तकारी असर डालता है ।
- जीर्णकास मे इसका अवलेह बहुत ही उपयोगी होता है इसके लिये व्याघ्री हरितकी, कंटकारी अवलेह आदि का प्रयोग करता हुं ।
- अपानवायु जन्य स्त्री रोग के बन्ध्य्त्व मे उपयोग किया जाता है ।
- जीर्णपीनस रोगों मे इसका अवलेह और इससे सिद्ध् तैल बहुत ही उपयोगी है
- हाई ब्लडप्रैशर मे उपयोग किया जाताहै ।
उष्णवीर्य होने पर यह कफ़वातशामक होते हुए भी विभिना पित्तविकारों मे भरपूर प्रयोग की जाती है ।
अधिक जानकारी के लिये संपर्क करें --- Dr. D.P Rana
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