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Sunday, August 22, 2010

Capparis decidua, करीर, कैर, करीं


यह प्राय शुष्क प्रदेश मे पाया जाता है , हरियाणा, राजस्थान आदि मे सूखी जगह पर पाया जाता है। यह पत्रविहीन एवं कंटीला क्षुप होता है और झाड़ीनुमा होता है।
ज्यादा डीटेल आप फ़ोटो से प्राप्त कर सकते हैं ।
यह कफ़वात शामक होता है और मुख्य रुप से जन्तुघ्न, व्रणशोधन, वेदनास्थापन और शुष्कार्शनाशक होता है ।

इसकी कोमल कोपलो को यदि मसल कर शरीर के किसी हिस्से पर लगा दे तो वहां पर विदाह उत्त्पन्न कर करके फ़फ़ोले पैदा कर देता है ।
मुख्य रुप से इसका प्रयोग सुखी बबासीर मे किया जाता है , इसका आचार वातशामक और वातानुलोमक होता है ।
कोमल कोंपलो को मसल कर कल्क बांधने से गृध्रसी रोग मे लाभकरी है।
कफ़वात शामक , लघु रुक्ष, कटु तिक्त और उष्ण होने के कारण यह फ़फ़ज और वात्ज हृदय रोग मे भी लाभकरी है ।
चित्र प्राप्ति स्थान -- जिला करनाल हरियाणा

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