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Saturday, August 21, 2010

Marsilea minuta, सुनिष्णक, चोपतिया

इसका कोमल क्षुप प्राय: जलासन्न प्रदेश मे पाया जाता है , इसके पत्र स्वास्तिक के निशान की तरह चार भागों मे बंटे हुए होते है ।
यह त्रिदोषशामक, लघु, स्निग्ध, कषाय, मधुर शीत और विपाक मे कटु होता है ।
यह मुख्य रुप से रक्तजार्श(Bleeding Piles) मे बहुत ही उपयोगी है ।
वैसे मैने इसको अपनी आयुर्वेदशाला मे उपयोग नही किया है , लेकिन इसका प्रयोग शाक के रुप मे किया जा सकता है , निद्राजनन, वेदनास्थापन, तथा मृदुविरेचक होने के कारण खुनी बवासीर मे उपयोगी है ।
मुख्यरुप से इसके शाक का उपयोग किया जाता है , स्वरस की मात्रा - १० से २० मि.लि. होती है ,
स्वरस को हमेशा मृतपात्र मे कुछ गरम करके और उसमे कुछ काली मिरच का चुर्ण डालकर प्रयोग किया जाना चाहिये ।
प्रसिद्ध योग-- सुनिष्णकचांगेरी घृत
चित्र प्राप्तिस्थान-- जिला करनाल हरियाणा

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