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Saturday, August 14, 2010

eclipta alba, भृंगराज

यह एक छोटा क्षुप होता है जो कि उत्तर भारत मे लगभग हर जगह मिल जाता है , यह प्राय: नमी वाली जगह पर मिलता है ।


पत्ते लंबे और नोकिले होते हैं व अभिअमुख होते हैं । तने का रंग लालिमा लिये हुए होता है , पूराने पौधे के पत्ते भी लालिमा लिये हुए हरे रंग के होते हैं ।
पुष्प छोटे वृण्त युक्त और सफ़ेद रंग के होते है । तथा छोटे छोटे बीजो युक्त होते हैं बिल्कुल सुरज मुखी के फ़ुलों की तरह लगते हैं ।
यह कटु रस युक्त तीक्ष्ण , रुक्ष, उष्ण होता है ,
प्रभाव -- केशों को रंजने वाला , यानि इसका प्रयोग मुख्य रूप से बालों की बिमारियों मे किया जाता है ।
कफ़वात शामक, उत्तम रसायन, लिवर टोनिक, केश्य, कृमिनाशक, श्वासकास नाशक, नेत्ररोग नाशक, शिरोरोग नाशक ।
मै इसको अपनी आयुर्वेदशाला मे निम्नलिखित रोगों मे प्रयोग करता हूँ --
  • उदररोगॊं मे इसके स्वरस का प्रयोग ।
  • अर्श या बवासीर मे इसके स्वरस का प्रयोग और इसके पांचाग की मसी का प्रयोग रक्तजार्श मे स्थानिक प्रयोग
  • विभिन्न रसायन कर्मो के लिये भृंगराजासव का प्रयोग
  • बालो की सम्स्याऒ मे इससे सिद्द तैल का प्रयोग
  • विभिन्न त्वचारोगों मे स्थानिक और अभ्यांतर प्रयोग
  • मुत्ररोगो मे जब मुत्र की मात्रा कम हो और मुत्र गाड़ा और लाल रंग का हो
चित्र प्राप्ति स्थान --- राणा एग्रिकल्चर फ़ार्म जिला करनाल हरियाणा ।
Posted by Picasa

2 comments:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

पढ़ रहा हूँ। ढेरों जानकारियाँ पा रहा हूँ। आभार।

राजाभाई कौशिक said...

मुझे भृँगराज का ताजा रस 4-5 लिटर चाहिए क्या मिल पायेगा?