भारत मे लगभग हर जगह पाया जाने वाला यह पौधा ग्रीष्म ऋतु मे हर भरा रहने वाल और शीत ऋतु मे सुखने वाला होता है । इसके पौधे मे कुछ अजीब सी गंध आती है ,पत्ते तीन या चार पतिया युक्त और दंतुर होते है ।
इसके पुष्प मंजरियों मे आते है और हरिताभ श्वेत रंग के होते हैं ।
स्त्री जाति की राल युक्त मजरी को गांजा के नाम से जाना जाता है । पत्र एंव शाखाओं पर जमे हुए रालीय पदार्थ को चरस के नाम से जाना जाता है । ये सभी मादक पदार्थ होते है ।
आयुर्वेदिक गुण कर्म ----
यह लघु तीक्ष्ण, तिक्त विपाक मे कटु, वीर्य मे उष्ण, और प्रभाव मे मादक होती है ।
यह अग्नि का दीपन करने वाली , कफ़ को दूर करने वाली , ग्राही , पाचक, पित्तकारक, मोह, मद, वाणी और जठराग्नि को बड़ाने वाली होती है ।
मुख्य रुप से इसका प्रयोग वाजीकरण औषधियों मे किया जाता है । स्थानिक लेप मे यह वेदना हर होती है ।
प्रधान क्रिया मन और बुद्धि पर होती है ,निद्राजनक औषधियों मे इसका प्रयोग किया जाता है ।
भांग हास-विलास के रंग को जमानेवाली, मद तथा मोह मे अतिवृद्धि करने वाली ,कब्ज को दूर करने वाली, अनंग रंग तथा क्षुढा की तरंग को बड़ानेवाली हरित- रंग के अंगवाली भांग स्पृहणीय है। ( सि. भै. म.मा )