इसका फ़ैलने वाला छोटा क्षुप होता है जो कि नमी वाली जगह पर होता है । पत्ते कुछ मांसल और छ्त्राकार होते है तथा किनारों पर दंतुर होते है । इसके पत्तों का व्यास लगभग आधा ईंच से लेकर एक ईंच तक होता है।
उत्तर भारत मे यह लगभग हर जगह पर नमी वाली जगह पर छाया वाली जगह पर मिल जाता है ।
आयुर्वेद मे यह द्रव्य मेध्य द्र्व्य के रुप मे गिना जाता है । पागलपन और मृगी की प्रसिद्ध औषधी सारस्वत चुर्ण मे इसके स्वरस की भावना दी जाती है ।
आधुनिक खोजों से भी इस द्र्व्य के मेध्य गुण होने का प्रमाण मिलता है ।
विद्वानो मे एक अन्य द्र्व्य ऐन्द्री (Bacopa monnieri) को भी ब्राह्मी के रुप मे लिया गया है । अधिकतर वैद्य इसी को असली ब्राह्मी मानते हैं ।
यह शीत वीर्य, तिक्त रस प्रधान, कषाय, लघु, मेधा के हितकर, विपाक मे मधुर, आयु को बड़ाने वाली , रसायन, स्वर को उत्तम करने वाली स्मरण शक्ति को बड़ाने वाली, होती है । ( भाव. प्रकाश )
मै अपनी आयुर्वेदशाला मे इसको निम्नलिखित रोगों मे प्रयोग करता हूँ --
- विभिन्न प्रकार के त्वचा विकारो और बालो के विकारो मे इसका स्थानिक प्रयोग
- बच्चो के शब्द उच्चारण के ठीक से ना करने पर इसके पत्तों के चबाने के लिये दिया जाता है ।
- स्मरण शक्ति को बड़ाने के लिये इसके स्वरस या चुर्ण का प्रयोग ।
- हृदय की दुर्बलता मे शंखपुष्पी के साथ इसका प्रयोग लाभदायक है ।
- शोथ मे इसका प्रयोग मकोय के स्वरस के साथ लाभदायक पाया गया है ।
मात्रा-- स्वरस -- १० से २० मि. लि.
प्रसिद्ध योग-- सारस्वत चुर्ण, ब्राह्मी तैल
No comments:
Post a Comment