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Friday, April 8, 2011

Shankhpushpi, Convolvulus pluricaulis, शंखपुष्पी

शंखपुष्पी सरा स्वर्या कटुस्तिक्ता रसायनी । अनुष्णा वर्णमेधाग्निबलायु:कान्तिदा ॥
हरेत अपस्मारमथोन्मादमनिद्रां च तथा भ्रम॥ 
शंखपुष्पी का एक नाम मांग्ल्यकुषुमा भी है यदि इसके सुबह दर्शन हो जाते है तो यह शुभ फ़ल देने वाली होती है ।
शंखपुष्पी के बारे मे युँ तो विद्वानो मे बहुत ही मत भेद हैं , परन्तु चित्रोक शंखपुष्पी को ही ज्यादातर विद्वान शंखपुष्पी की तरह प्रयोग करते हैं ।
आधुनिक द्रव्य गुण शास्त्र मे इसको मेध्य वर्ग मे रखा गया है । 
पराम्परागत रुप से यह हमारे क्षेत्र मे दिल की होल यानि हृद्द द्र्व के लिये प्रयोग होती है । इसके स्वरस का प्रयोग अनिद्रा मे किया जाता रहा है । मेध्य होने के कारण बच्चों को  सीरप पीलाये जाते हैं । 
यह स्निग्ध, पिच्छिल, शीत तिक्त और प्रभाव से मेध्य होती है । 
दोषकर्म मे यह मुख्य रुप से वातपित्त शामक होती है । विभिन्न वातपैत्तिक विकारों मे इसका प्रयोग किया जाता है ।

Monday, April 4, 2011

Fever nut, Caesalpinia crista, लता करंज, सागरगोटा,

लगभग सारे भारत मे मिल जाता है , यह कंटको से युक्त गुल्म तरह की लता होती है और सदा हरा भरा रहता है । इसके फ़ल अण्डाकार एवं कंटक युक्त होते हैं जो पकने पर गहरे भुरे रंग के हो जाते है जिनके भीतर चमकीले सफ़ेद रंग का क्रोंच के बीज जैसे एक या दो बीज होते हैं ।
पते पत्रकों युक्त चोड़े होते है और गहरे हरे रंग के होते हैं ।
पुष्प पीले रंग के आते हैं ।
विषम ज्वर हर।

                                         करंजी स्तम्भनी तिक्ता तुवरा कटुपाकिनी ।
                                        वीर्योष्णा  वमिपित्तार्शःकृमिकुष्ठ्प्रेमहजित


लघु, रुक्ष तिक्त कषाय विपाक मे कटु और वीर्य मे उष्ण होते हुए यह त्रिदोषशामक होता है ।

प्रयोग--

मुख्यरुप से विषमज्वर या मलेरिया की प्रसिद्ध औषधी है ।

प्रमेह मे बहुत ही उपयोगी ।
व्लोकेज आफ़ फ़ेलोपियन ट्युब मे उपयोगी ।
कुष्ठ रोगों मे भी उपयोगी ।