रसायन, बलकारक, रस मे स्वादु, गुरु, शीतल, स्तन्य, नेत्रों के लिये हितकर, वायु, पित्त, रक्तपित्त, अग्निमांद्य, तथा शोथ को हरने वाली होती है ।
यह मुख्यरुप से वातपित्त शामक होती है है और मुख्यरुप से इसका प्रयोग शुक्रवृद्धि और स्तन्य वृद्धि के लिये किया जाता है ।
यह कंटकयुक्त आरोहणी लता होती है जो कि समस्त भारत मे तथा हिमालय मे ४ हजार ईट की ऊँचाई तक पाई जाती है। कृपया चित्र देखें।
चित्रप्राप्ति स्थान-- करनाल ( हरियाणा)
मै अपनी आयुर्वेदशाला मे इसकॊ निम्नलिखित रोगों मे प्रयोग करता हूँ-
- अम्लपित्त रोग मे शातावरी मण्डुर का प्रयोग ।
- शुक्रवृद्धि और स्तन्यवृद्धि के लिये शतावरी कल्प का प्रयोग ।
- गर्भीणि मे शतावरी घृत का प्रयोग ।
- रक्तप्रदर की भयंकर अवस्था मे इसका प्रयोग बहुत ही लाभकर होता है।
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