
यह एक छोटा क्षुप होता है जो कि प्राय वर्षाऋतु मे अधिक मिलता है प्राय उत्तर भारत मे लगभग हर मिल जाता है ।
पत्ते हर रंग के डैंचे के पौधे के तरह होते है , यदि हम पत्तों को उलट कर देखते है तो छोटे छोटे आमले की तरह के बीज पत्ते के पीछे लगे रहते है इसीलिये इसे भुमि आमला के नाम से जाना जाता है ।
आधुनिक द्रव्यगुण मे इसको मुत्रल वर्ग मे रखा गया है लेकिन इसका मुख्य प्रयोग लीवर रोगों मे सफ़लता पूर्वक किया जा रहा है ।
यह रुक्ष, लघु, तिक्त, कषाय , मधुर , और वीर्य मे शीत स्वभाव का होता है
यह वातकृत और कफ़पित्तशमन होता है ।
विभिन्न प्रकार के दुष्ट व्रणो मे उपद्रवॊं को रोकने के लिये इसको धारण किया जाता है ।
लीवर के रोगो मे यह बहुत ही उपयोगी होता है ।
यह मुत्रविरेचक भी होता है ।
मैने इसका स्वतंत्र रुप से अपनी आयुर्वेदशाला मे प्रयोग नही किया है ।
चित्रप्राप्ति स्थान-- जिला करनाल हरियाणा
प्रयोज्यांग-- पांचाग, मात्रा-- स्वरस १० से २० मि. लि. चुर्ण- १ से ३ ग्रा. ।
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