आस्था आयुर्वेद , असंध (हरियाणा)| पुराने रोग एवं बन्ध्यत्व निवारण केन्द्र |
Monday, November 29, 2010
बिल्व, बेल, Aegle marmelos
लघु,रुक्ष,कषाय, तिक्त विपाक मे कटु और वीर्य मे उष्ण होने के कारण यह कफ़ वात शामक है । आधुनिक द्र्व्यगुण मे इसको ग्राही वर्ग मे रखा गया है।
उत्तरभारत मे हर जगह मिल जाता है । इसका बहुवर्षायु वृक्ष होता है , पत्र त्रिपत्रक होते है , फ़ल गोल कठोर और बड़े आकार का होता है ।
अधिक जानकारी के लिये कृपया चित्र देंखे ।
विल्व का फ़ल अपक्व ही श्रेष्ठ होता है , पका हुआ फ़ल वातकारक और अग्निमंद करने वाला होता है ।
बिल्व का मूल, त्वचा, पत्र तथा फ़ल का गुदा औषधार्थ व्यवहृत होता है ।
दशमूलादि कषायों मे मूल या त्वचा का प्रयोग करना चहिए । इसका मूल मादक तथा ग्यान तंतुओ पर शामक असर करने वाला माना जाता है। अत: यह निद्रानाश आदि मे प्रशस्त है ।
कच्चा बिल्व्फ़ल मज्जा और सोंफ़ तथा वचा के साथ आंव मे विशेष लाभ करता है।
ग्रहणी और आंव की यह विशेष औषधि है ।
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