यह छोटा मुलायम रोमश एवं उग्र कर्पूरगंधि क्षुप होताहै जो कि उत्तर भारत मे सर्दियों के मोसम मे होताहै और बंसत के आखिर मे यह सूख जाता है , इस पौधे की सुंगंध चारो और फ़ैल जाती है ।
आयुर्वेदिक गुण-
गुण-- लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण
रस-- तिक्त कषाय
विपाक -- कटु
वीर्य-- ऊष्ण
कफ़पितशामक, रक्तरोधक, कृमिहर, शोथहर, व्रणरोपण,
मै अपनी आयुर्वेदशाला मे इस द्रव्य को निम्नलिखित रोगों मे उपयोग करता हूँ---
- रक्तज अर्श मे बहुत ही उपयोगी , एलुआ और इस द्रव्य को मिलाकर चने के आकार की गोलियाँ बना कर रक्तज अर्श मे प्रयोग
- जले हुए व्रणों मे कल्क का उपयोग बहुत ही अच्छा व्रणरोपण और एंटीसेप्टिक होता है
- बच्चॊ के कृमि ( उदर कृमियों मे ) एक चमच स्वरस को गर्म करके पिला दे
- नाक मे हुई फ़ुन्सियों मे इसकी जड़ को श्वेत कपड़े मे बांध कर गले मे डालने से तुरंत फ़ायदा होता है ।
1 comment:
कोई भी आयुर्वेदिक प्रेमी यदि इस द्रव्य के बारे और अधिक जानकारिया जानता है को कृपया करके जन कल्याण के लिये जरुर बताएँ । ये जानकारी आपको कैसी लगी कृपया जरुर बताएं ।
धन्यवाद
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