अश्वगंधा एक बहुवर्षायु क्षुप होता है जो पश्चिमोत्तर भारत, महाराष्ट्र, मुजरात, मध्यपर्देश आदि मे मिलता है । देश भेद से यह पाँच प्रकार का होता है । मध्य प्रदेश के मन्दोसर जिले मे इसकी भरपुर खेती की जाती है ।
अश्वगन्धा के गुण और कर्म--
गुण- लघु स्निग्ध
रस- तिक्त, कटु, मधुर
विपाक- मधुर
वीर्य-- ऊष्ण
प्रयोज्य अंग-- मूल चुर्ण
मात्रा- ३-६ ग्रा.
अश्वगन्धा के गुण और कर्म--
गुण- लघु स्निग्ध
रस- तिक्त, कटु, मधुर
विपाक- मधुर
वीर्य-- ऊष्ण
प्रयोज्य अंग-- मूल चुर्ण
मात्रा- ३-६ ग्रा.
मुख्य प्रयोग-
- सुजन मे इसके पत्तों को एरण्ड तैल मे गरम करके प्रभावित स्थान पर रख देते है , जिससे सुजन मे कमी आती है ।
- गिल्टी और स्थानिक सुजन मे इसकी मूल को पानी मे घीस कर लेप लगाने से वो ठीक हो जाती है
- चोपचीनी और अश्वगंधा के चुर्ण को समान भाग मिलाकर कोष्ण जल के साथ लेने से यह आमवात और पी आई डी मे बहुत ही चमत्कारी असर दिखाता है ।
- मानसिक शांति और अधिक रक्तचाप मे इसका प्रयोग किया जाता है इसके लिये अश्वगंधारिष्ट या अश्वगंधा लेह बहुत ही अच्छे योग है
- मुत्राघात ( पेशाब की रुकावट) मे यह बहुत ही उपयोगी है ।
- बालशोष मे यह विशेष उपयोगी है
- स्त्रियों की गर्भाशय संबंधि व्याधियों मे यह अतीव उपयोगी है ।
3 comments:
आप इसका एक गुण बताना तो भूल ही गए, की यह वाजी कारक भी है | इसका निरंतर उपयोग शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वर्द्धी करता है | आपके बलोग पर पहली बार आना हुआ है | बहुत ही सुन्दर बलोग है | हर सप्ताह कम से कम एक पोस्ट जरूर लिखे | इस विषय पर हिन्दी में बहुत कम लिखा गया है | धन्यवाद ||
इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
welcome, valuable information
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