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Tuesday, April 27, 2010

Alhagi camelorum , Camel thorn, यवासा


इसका कंटकयुक्त क्षुप वर्षायु होता है , जब ग्रीष्म ऋतु मे सभी क्षुप सुखने के कगार पर होते है तो यह हरा भरा होता है , वर्षा ऋतु मे यह सुख जाता है , मई मे इस पॊधे के गुलाबी रंग के छोटे छोटे पुष्प आते हैं, यह उत्तर भारत मे लगभग सभी जगह विशेष कर सुखी धरती पर होता है ।

इसके स्राव को तुरंजबीन कहते हैं ।

गुण- गुरु, स्निग्ध, रस-- मधुर, तिक्त , कषाय विपाक-- मधुर, वीर्य-- शीत


तृष्णानिग्रहण, वातपित्त शामक, रक्तरोधक, मुत्रजनन, रक्तार्बुद नाशक, रक्तज अर्श, रक्तभार शामक, विसर्प नाशक, रक्तशोधक, भ्रम नाशक, कासहर,

वातपैतिक विकारो जैसे की , तृष्णा, ज्वर, वमन, दाह आदि रोगो मे यह उपयोगी है
रक्तपित्त, रक्तज अर्श, वातरक्त मे इसके पांचाग का स्वरस या चूर्ण दिया जाता है ।
कुछ वैद्य इसके स्वरस को रक्तार्बुद मे प्रयोग करते हैं ।
मकोय और यवासा के स्वरस को कुछ गरम करके देने से मुत्र मार्ग की जलन , मुत्रकच्छ और मुत्राघात मे प्रयोग किया जाता है ।

1 comment:

PN said...

बहुत अछि जानकारी. प्रयोग कैसे करें यह भी बता देते.