Friday, April 2, 2010

Boerhavia diffusa,Spreading hogweed पुनर्नवा, गदहपुरना


यह एक फ़ैलने वाला क्षुप होता है जो कि स्मस्त भारत मे प्राय: शुष्क स्थानो मे होता है , गर्मियों मे यह सूख जाता है , इसके पत्ते लालिमा लिये हुए हरे रंग के मांसल, लटवाकार, होते है , काण्ड लालिमा लिये हुए हरे रंग का होता है । पुष्प बहुत छोटे और गुलाबी रंग के होते है और एक लम्बी टहनी (वृन्त) पर गुच्छों मे आते है , इसकी मूल का ज्यादा प्रयोग होता है ।

आयुर्वेदिक गुण कर्म--
गुण-- लघु, रुक्ष

रस-- मधुर, तिक्त, कषाय
विपाक-- मधुर

वीर्य-- ऊष्ण


त्रिदोषशामक,शोथघ्नी,विरेचक,नेत्रविकार नाशक, कब्ज नाशक, विषहर, पाण्डु रोग नाशक, उदर रोग नाशक, सर्वांगशोथ नाशक, मुत्रविरेचक,ह्रुदय रोग नाशक,

मै अपनी आयुर्वेदशाला मे इसको निम्नलिखित रोगों मे प्रयोग करता हूँ ---

१. सभी प्रकार की स्थानिक सुजन और सर्वांग सुजन मे इसकी मूल के कल्क को थोड़ा गरम करके शोथ युक्त स्थान पर लेप लगाने पर वह सुजन कम हो जाती है ।

२. सर्वांगशोथ विशेष कर हृदय जन्य शोथ मे यह बहुत ही लाभ करती है ।

३. अक्षि अभिष्यंद(eye flue) और अक्षि शूल मे इसकी मुल के स्वरस को डालने से चम्तकारी लाभ मिलता है ।

४. शोथ युक्त हृदय रोगों मे और यृकत(liver) जन्य शोथ मे इसकी मूल का क्वाथ या इसके शास्त्रीय योगों को देने से फ़ायदा मिलता है ।

५. इसके शाक का प्रयोग उदररोग, पाण्डु रोग(anemia),हृदय रोग , शोथ(edema), आमवात. आदि मे बेहिचक कर सकते हैं ।

2 comments:

Dr. D. P Rana said...

पुनर्नवा के बारे यदि आपको और जानकारी हो तो जरुर बताएं । धन्यवाद

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

बचपन में नाना घूमते हुए आस पास फैली वनस्पतियों के बारे में बताया करते थे। आप के ब्लॉग के चित्रों को देख कर उन्हें दुबारा से याद करने की और ढूढ़ने की कोशिश करूँगा लेकिन चित्रों में हरा रंग बहुत डिम सा लगा। पहचानने के लिए ठीक नहीं है। थोड़ा एडिट कर बढ़ा कर दिया करें।

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